आलू की खोदाई से मजदूरों को मिल रहा रोजगार
By:Yunus Khan हापुड़, गढ़मुक्तेश्वर। जनपद में आलू की खोदाई शुरू हो गई है। इस बार आलू की फसल की पैदावार पहले से लगभग 20% गिरी है। जिसका कारण खराब मौसम और मिट्टी की उर्वरा शक्ति का कम होना माना जा रहा है। जनपद में इस बार आलू की फसल का रकबा लगभग अस्सी हैक्टेयर हैं।जनपद में आलू की फसल सबसे अधिक होती है। सितंबर अक्टूबर में बोआई के बाद अब आलू की खोदाई शुरू हो गई है। सुबह से ही खेतों में किसानों की भीड़ इसे दर्शा रही है। खेतों में जगह-जगह मजदूर, तो कहीं मशीन के साथ आलू की खोदाई कराई जा रही है।आलू की खोदाई होने से मंडी में भी आलू की आवक बढ़ गई है।
लोगों को मिल रहा रोजगार
आलू की खोदाई शुरू होने से लोगों के चेहरे खिल गए हैं। उन्हें रोजगार मिलने लगा है। ठेकेदार द्वारा मजदूरों को लेकर आलू की खोदाई की जाती है। इसमें ठेकेदार के वाहन गांव से मजदूरों को लाने के साथ उन्हें छोड़ने भी जा रहे हैं। इसमें महिला को 250 व पुरुष को 300 रुपये तक मजदूरी के साथ आलू भी मिलते हैं। कोल्ड स्टोर मालिकों के अनुसार सामान्य आलू कोल्ड में रखने का किराया करीब 100 रुपये व सुगरफ्री करीब 120 प्रति बोरा लिया जा रहा है।
खेतों से ही कोल्ड स्टोर पहुंच रहा आलू
किसानों की मेहनत पर मौसम कब पानी फेर दे, कुछ पता नहीं चलता। इसी के चलते किसान आलू की फसल को जल्द से जल्द कोल्ड स्टोर भेजने में लगे हैं। खेतों पर ही आलू की खोदाई के साथ उसकी छंटाई व पैकिग कर सीधे उसे कोल्ड स्टोर भेजा जा रहा है। जनपद का आलू फसल के लिए दूर-दूर तक पहचाना जाता है। जिले में सिंभावली, बहादुरगढ़, गढ़मुक्तेश्वर, बाबूगढ़, पिलखवा सहित सभी क्षेत्रों में आलू उगाया जाता है।
कम पैदावार से गायब हुई किसानों के चेहरों की रौनक
पहले आलू की पैदावार 60 से 65 बोरा प्रति बीघा रही। वहीं, इस बार प्रति बीघा में 50 बोरा आलू ही निकल रहा है। बाजार में आलू भले ही दस रुपये किलोग्राम हो पर किसानों से 50 किलोग्राम का बोरा 400 से 450 रुपये मोटे आलू व मिश्रित (मोटा, गुल्ला, किररी) की कीमत 350 से 400 तक चल रही है।
क्या कहते हैं किसान
आलू की फसल किसानों की आय का मुख्य साधन है। पिछले दो साल से यह फसल किसानों के लिए घाटे का सौदा बनी हुई है। इस बार भी आलू की पैदावार कम दिख रही है। -किसान देवेंद्र सिंह लोदीपुर,
आलू की फसल में लागत सबसे अधिक आती है। उसके बाद बेसहारा पशुओं से बचाना किसी चुनौती से कम नहीं। पिछले वर्षों से इस बार आलू की पैदावार कम है। -किसान उपेश त्यागी झड़ीना,