ढैंचा की खाद से बढ़ाएं खेतों की उर्वरता: सतीश चंद्र शर्मा
हापुड़। लगातार धान, गेहूं, ज्वार समेत अधिक पोषक तत्व लेने वाली फसलों को उगाने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। वहीं रासायनिक खादों के असंतुलित प्रयोग, पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक खाद न डालने और फसल अवशेष खेतों में जलाने से भूमि की उत्पादकता घटती है। कृषि विभाग विभाग के वरिष्ठ प्राविधिक सहायक सतीश चंद्र शर्मा ने बताया कि भूमि की उर्वरता और उपजाऊपन बढ़ाने के लिए ढेंचा की हरी खाद बेहद कारगर है। खेत में ढेंचा की हरी खाद लगाने से लगभग प्रति एकड़ 22 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन मिलती है, जिससे भूमि की संरचना में सुधार आता है। जिससे किसान आगामी फसल में नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा कम कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि ढैंचा की फसल हरी खाद के रूप में बोने के बाद जब वह लगभग 40 दिन की हो जाए, तो मिट्टी पलट हल से जुताई कर उसे खेत में पलट देना चाहिए। लेकिन इस समय खेत में नमी की पर्याप्त मात्रा होना अति आवश्यक है। इसके साथ ही कोई भी वेस्ट डीकंपोजर का प्रयोग पलटने से पहले आखिरी सिंचाई के साथ करना चाहिए। इसके अलावा ट्राइकोडर्मा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। सतीश चंद्र शर्मा ने बताया कि जनपद हापुड़ के सभी राजकीय कृषि बीज भंडारों पर हैंचा का बीज पहुंच चुका है। जिसकी बिक्री शुरू कर दी गई हैँ । बीज लेने के लिए किसानों को अपना आधार कार्ड अथवा किसान पंजीकरण संख्या लाना अनिवार्य है। वहीं किसान ई-पॉश मशीन पर अंगूठा लगाकर बीज ले सकते हैं। उन्होंने बताया कि ढैंचा के बीज की कीमत 90 रुपये प्रति किलो रखी गई है, जिस पर 50 प्रतिशत अनुदान भी किसानों को मिलेगा।