मां शकुंतला के लिए श्रवण कुमार बने, मुरादाबाद के दो पुत्र
मुरादाबाद के लिए ब्रजघाट से कावड़ में जल और मां को लेकर हुए रवाना
हापुड़, गढ़मुक्तेश्वर। मां यह वह शब्द है जो बच्चों को सुरक्षा का विश्वास दिलाता है। मां के आंचल में बच्चा अपने को सुरक्षित महसूस करता है। विवाहित महिला भी मां शब्द सुनने के लिए सबसे आतुर होती है वह भी चाहती है कि उसका बच्चा सबसे पहले उसको पुकारें। मां का स्थान संसार में सर्वापरि दिया गया है। मां की लोरी ममता का आंचल हर बच्चे को बड़ा करने में अहम योगदान होता है। जब भी कोई अपने बच्चों को अपने माता-पिता की सेवा करने के लिए प्रेरित करता है तो वह बच्चों को श्रवण कुमार की ही कहानी सुनाता है। हर माता-पिता चाहते हैं, कि उनकी संतान श्रवण कुमार जैसी हो। लेकिन आज के कलयुग में ऐसी कई घटनाएं होती है जिसमें बच्चे अपने माता-पिता को बहुत दुख देते नजर आते हैं। लेकिन ऐसे में बेटों द्वारा मां को गंगाजल के साथ यात्रा कराना एक सुखद खबर है। मां की सेवा करने वाला खुशनसीब होता है। मां की सेवा करने के लिए ऐसा ही कलयुग का श्रवण कुमार पतित पावनी मां गंगा की नगरी में पहुंचा, जहां एक कांवड़ में गंगा जल और दूसरी में अपनी मां को बैठाकर पैदल यात्रा करते हुए अपने गत्वंय के लिए रवाना हो गए।
मुरादाबाद के गांव खारकपुर जगतपुर निवासी शकुंता देवी के पति की करीब पांच वर्ष पूर्व मौत हो गई थी। उनकी तमन्ना थी कि वह ब्रजघाट गंगा स्नान करने के लिए आए। लेकिन समय की परिस्थितियों ने उनको आने नहीं दिया। श्रावण के पवित्र माह में जलाभिषेक करने के लिए उसके बेटे राजेश और महीपाल ने मां को गंगा स्नान कराने की बात कहीं। बेटों के साथ मां भी गंगा नगरी आ गई। यहां दोनों बेटों ने गंगा में आस्था की डूबकी लगाई और भगवान आशुतोष को जलाभिषेक करने के लिए जल भरकर एक कांवड़ में रख दिया। उसके बाद दोनों भाईयों ने श्रवण कुमार बनते हुए कांवड़ के दूसरे छोर में अपनी मां को बैठा लिया और अपनी मंजिल की ओर चल दिए। दोनों भाईयों की इस कार्यशैली को देखकर हर कोई उनकी तारीफ करता हुए नहीं थक रहा था। वहीं दादी को कांवड़ में बैठा देखकर कपिल, लक्की सौम्य भी उनके साथ पैदल कदमताल करते नजर आए।