सातवें नवरात्र पर हुई मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना
हापुड़। सातवें नवरात्र को भक्तों ने उपवास रखकर मां कालरात्रि की पूजा अर्चना की। मां दुर्गा के किसी भी रूप की आराधना करने से धन वैभव मिलता है तो किसी को संतान का सुख प्राप्त होता है। ऐसा ही मां कालरात्रि का स्वरूप है। जिससे भक्तों को अभय का वरदान मिलता है और घर में सभी बाधायें दूर होती हैं। नगर व क्षेत्र में सातवें नवरात्र को भक्तों ने उपवास रखकर मां कालरात्रि की उपासना की। पंडित विनोद शास्त्री ने जानकारी देते हुए बताया कि मां कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह से काला है इनकी श्वांस से अग्रि निकलती है। बाल बिखरे हुए हैं और गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला है। मां कालारात्रि के चार हाथ है जिनमें एक हाथ में कटार और हाथ में लोके का कांटा है। वहीं अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में हैं। मां के तीन नेत्र हैं। विनोद शास्त्री ने बताया कि मां कालरात्रि सदैव अपने भक्तों पर कृपा करती हैं और शुभ फल देती हैं इसके चलते मां का एक ओर नाम शुभंकरी भी पड़ा है। मां कालरात्रि भक्तों के भय दूर कर अभय का वरदान देती है। मां कालरात्रि की पूजा गंगाजल, पंचामृत, पुष्प, गंध, अक्षत आदि से करनी चाहिए और गुड़ का भोग लगाना चाहिए। मां कालरात्रि की पूजा में पवित्रता, शुद्धता, संयम, ब्रहमचर्य का पालन तथा सत्य मार्ग का अनुसरण करने का विधान है। पूजा में श्रद्धा और विश्वास का होना बहुत जरूरी है। अन्यथा पूजा का फल नहीं मिलता है। मां कालरात्रि अहंकार, लोभ, झूठ, क्रोध, मोह का त्याग करने वालों पर सदैव कृपा रखती है। मां की साधना यदि शास्त्रीय विधि से की जाय तो तत्काल ही फल की प्राप्ति होती है। सातवें नवरात्र पर नगर के मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ रही।