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सीएम की घोषणा के बाद भी ब्रजघाट नहीं बन पाया उत्तरप्रदेश का छोटा हरिद्वार

By:Robin Sharma

हापुड़। नौ नवंबर सन 2000 तक तीर्थ नगरी हरिद्वार उत्तर प्रदेश का एक हिस्सा था। उसके बाद उत्तर प्रदेश से कटकर उत्तराखंड बनने के बाद तीर्थ नगरी हरिद्वार प्रदेश का हिस्सा बन गया। उसके बाद सरकार ने ब्रजघाट को छोटा हरिद्वार के रूप में विकसित कर प्रमुख तीर्थ स्थल बनाने की घोषणा की और योजना तैयार की गई। 2017 में सरकार ने बृजघाट के लिए 100 करोड़ रुपये की लागत से कार्ययोजना तैयार की, जिसमें से कुछ योजनाओं पर काम भी शुरू हुआ, लेकिन उसमें भी निराशा हाथ लगी और 20 करोड़ से ही विकास कार्य हो सके हैं। वैदिक सिटी और हैगिंग पुल बनने के साथ ही आदर्श रेलवे स्टेशन और अंतर्राज्यीय बस अड्डे का निर्माण किए जाने की भी घोषणा की गई थी। जिसके बाद कई सरकारें आई और गई, लेकिन विकास की दहलीज पर खड़ा बृजघाट आज भी छोटा हरिद्वार बनने के सपने संजोये बैठा है।

ब्रजघाट पर अभी तक कराए गए विकास कार्यों का खाका
ब्रजघाट में गेस्ट हाउस,एम्यूजमेंट पार्क और लेजर शो फव्वारा को 20 करोड़ की लागत से तैयार किया है। जिनका अभी तक उद्घाटन तक नहीं हुआ है। यहां 100 करोड़ से 11 बड़ी परियोजनाओं पर काम होना है। मल्टीलेवल कार पार्किंग, घाटों के सुंदरीकरण, प्रवेश द्वार, ग्रेनाइट पत्थरों का कार्य, ब्रजघाट की चारदीवारी को राजस्थान के पत्थरों से तैयार किया जा रहा है। घाटों के सुंदरीकरण के साथ ही पांच करोड़ से फेसिंग लाइटिंग की व्यवस्था की जा रही है। इससे घाट और ब्रजघाट परिसर रंग-बिरंगी रोशनी और पत्थरों से जगमगाते हुए नजर आएंगे। हर की पौड़ी पर गंगा के बीच में ही प्लेटफार्म बना है। वहीं गंगा आरती का कार्यक्रम संपन्न होता है। ऐसी व्यवस्था ब्रजघाट पर भी की गई है। गढ़ और ब्रजघाट को 24 घंटे बिजली देने की योजना है।

पर्यटन केंद्र बनाने की घोषणा को बीता दो दशक से अधिक समय
गंगा नगरी को तीर्थ स्थल और पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करना भाजपा सरकार की प्राथमिकताओं में रहा। वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ब्रजघाट को उत्तर प्रदेश का हरिद्वार बनाने की घोषणा गंगातट से की थी। जिसके बाद 2005 से रुका हुआ विकास का कार्य तेजी से  शुरू किया गया। अब इंवेस्टर्स समिट के माध्यम से जिला प्रशासन ने गढ़ को टूरिज्म के रूप में विकसित करने की निवेशकों के साथ चर्चा की है। देश-विदेश के निवेशकों ने इसमें रुचि भी दिखाई है। जिला प्रशासन को अकेले गढ़ टूरिज्म के लिए तीन हजार करोड़ के प्रस्ताव मिले हैं। इस निवेश से गढ़मुक्तेश्वर में डेस्टिनेशन वेडिंग रिसोर्ट, होटल, रिसोर्ट, प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए बिजनौर से नरौरा के बीच गंगा में रहने वाली डाल्फिन को आर्कषण का केंद्र बनाने के लिए डाल्फिन वाच बनाई जाएगी। इसका बोटिंग के माध्यम से टूरिस्ट आनंद उठा सकेंगे, अब इन योजनाओं के सिरे चढ़ने का इंतजार है। वर्ष 2017 से 20 करोड़ रुपये की लागत से ही यहाँ विकास कार्य हो सके हैं, हालांकि वे भी रखरखाव के अभाव में जर्जर हो रहे हैं, 100 करोड़ की योजनाओं में से अभी तक मात्र 20 करोड़ रुपये से ही विकास कार्य हुए हैं।

आगे इन विकास योजनाओं की है तैयारी
जिसमे गंगा पर आने वाले पक्षियों को प्राकृतिक वन्य वातावरण उपलब्ध कराना है। धार्मिक आयोजनों के विशेष स्थान, अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित घाट, मल्टीलेवल पार्किंग वहीं बोटिंग गेस्ट हाउस और होटल, बटरफ्लाई पार्क, वाइल्ड लाइफ पार्क, ईको टूरिज्म पर काम किया जाना है। वैदिक सिटी, गंगा पर हैंगिंग पुल, ब्रजघाट में इलेक्ट्रिक शवदाह गृह, वैदिक यूनिवर्सिटी, अंतरराज्यीय बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, संग्रहालय और प्राचीन मंदिरों को जीर्णोद्धार होना है।

क्या बोले वरिष्ठ नागरिक

वरिष्ठ नागरिक राम मोहन शर्मा और विष्णु नागर ने बताया कि ब्रजघाट का विकास हरिद्वार की तर्ज पर किया जाना था। इनमें से कुछ कार्य किए गए, लेकिन कई महत्वपूर्ण कार्यों पर काम ही शुरू नहीं हुआ है। विकास कार्यों में लगातार हो रहे विलंब से मिनी हरिद्वार की परिकल्पना पूरी नहीं हो पाई है।

नहीं शुरू हुए, अभी तक ये कार्य
अस्थि विसर्जन घाट की स्थापना होनी है, महिला स्नानघाट बनाया जाना है, महिलाओं के लिए चेंजिंग रूम बनाने है, जो अब सिर्फ तीन चार ही बने हैं, फव्वारे के लिए बिजली का कनेक्शन तक प्रशासन नहीं करा पाया है।

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