कुदरत का कहर: भीषण गर्मी में सूख रहे जलाशय
हापुड़। भीषण गर्मी का प्रकोप लगातार बढऩे से पोखर तालाब समेत प्राकृतिक झील के बीच से होकर निकल रहे नाले का पानी भी सूख चुका है, जिसके कारण जंगली जीव जंतुओं को प्यास बुझाने के लिए रेगिस्तान की तरह इधर उधर भटकने से उनकी जान को भी गंभीर खतरा मंडरा रहा है। काफी दिनों से बारिश न होने के कारण इस बार कुदरत का कहर थमने की बजाए लगातार बढ़ता जा रहा है। भीषम गर्मी के साथ ही चिलचिलाती धूप का प्रकोप हर किसी को चौतरफा रुला रहा है, क्योंकि पसीना छूटने के साथ ही लू के थपेड़ों के बीच दोपहर में घरों से बाहर निकलना भी दुश्वार हो गया है। भीषण गर्मी के इस दौर में सर्वाधिक दिक्कत मेहनत मशक्कत करने वालों के साथ ही किसानों को झेलनी पड़ रही हैं, क्योंकि बिजली कटौती वाले इस दौर में फसलों की सिंचाई पर वैकल्पिक साधनों का सहारा लेकर मंहगा डीजल फूंकने को मजबूर होना पड़ रहा है। बारिश न होने के कारण गर्मी का प्रकोप न थमने से प्रकृति भी बुरी तरह कराह उठी है। अधिकांश गांवों में पोखर तालाबों का पानी सूख चुका है और कोथला खादर के जंगल वाली प्राकृतिक झील के बीच से होकर निकल रहा नाली भी सूख चुका है। जिससे जंगली जानवरों के साथ ही परिंदों को भी प्यास बुझाने के लिए रेगिस्तान की तरह इधर उधर भटकने को मजबूर होना पड़ रहा है। घने जंगल के बीच स्थित प्राकृतिक झील से निकल रहा नाला सूखने के कारण अब जंगली जानवरों को प्यास बुझाने के् लिए इधर उधर भटकना मजबूरी हो रही है। इस दौरान घने जंगल से निकलकर किसानों के खेतों में प्यास बुझाने आने जाने के दौरान जंगली जानवरों को खतरा भी बना हुआ है, क्योंकि दिन ढलने के बाद रास्तों में शिकारी प्रवृत्ति के लोगों द्वारा हमला किए जाने की आशंका भी बढ़ गई है। पर्यावरणविद् भारत भूषण गर्ग का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश होने का प्रतिशत बड़ी तेजी से साथ घटता जा रहा है। भीषण गर्मी और चिलचिलाती धूप के साथ ही अभी तक बारिश न हो पाने से जलाश्य सूखने लगे हैं, जिसके कारण जंगली जीव जंतुओं को प्यास बुझाने के लिए भी खूब मशक्कत करनी पड़ रही है।